कष्ट
कष्ट पर नव कष्ट देते
और कितना साधना है।
पीड़ा हर जग की प्रभु तू
जग करे आराधना है।
जग खड़ा यह रो रहा है
कुछ भी छिपा तुझसे नहीं ।
आशाएं होतीं खंड खंड
आ जाओ तुम हो जहाँ कहीं।
पीड़ा हर जग की प्रभु तू
जग करे आराधना है।
हो गयी परीक्षा बहुत प्रभु
देखो कितना तड़प रहा।
कितने ही जीवन लूटे
प्रतिदिन लाखों हड़प रहा।
ये छिदा तन बींध डाला
और कितना बाँधना है।
तेरे ही भय से डरकर
कालिया सा नाग भागा।
कंस मरा अत्याचारी
भाग्य सभी का था जागा।
रोग बना राक्षस डोले
आज इसको नाँधना है ।
— डॉ सरला सिंह स्निग्धा
सुंदर