आरंभ ही अंत है
सुबह आरंभ है
तो रात है अंत
इस आरंभ और
अंत के बीच में
जीवन है गहन
आंख बंद किए गए
जाना है आंख बंद किए
जीवन के जद्दोजहद में
ये भूल जाते हैं सभी
लालच ,झूठ,फरेब
चाहे जितना कर लें उम्रभर
धन-दौलत मान सम्मान
सब रह जाते यही
चाहे महलों में रहे
या फिर झोपड़ों में
सभी रुखसत होते
दुनिया से एक समान
अंत से व्यथित न हो–
जिसका अंत हुआ हो
उसका आरंभ है अवश्य
आरंभ और अंत के परिधि में
घुमती है ये दुनिया सारी
हर सबेरा का अंत हैं रात
हर रात का अंत हैं सबेरा।।
— विभा कुमारी “नीरजा”