लघुकथा

मां की भूमिका

इंटर पास सुभद्रा  ने पति की सहमति से  शहर के नॉर्थ कॉलोनी में चार घरों में मौसी उर्फ़ कुक का काम करना शुरू  कर दिया। पति की कमाई से  एकमात्र बेटे की पढ़ाई  और घर गृहस्थी चलाना संभव नहीं हो रहा था। अभी तीन महीने काम किया ही था कि  पति बीमार पड़ गया और लॉक डाउन भी लग गया।  अब क्या करे सुभद्रा?   पति की देखभाल करना  जरूरी, कैसे काम पर जाएगी? सास घर गृहस्थी के छोटा मोटा काम के साथ  पोते की भी देखरेख करती है।
मास्क लगाकर ही वह कॉलोनी के उस घर में जाती है जिसमें दो भाई रहते हैं, बहुत ही अच्छे स्वभाव के हैं दोनों और  उसे मौसी से ज्यादा सम्मान भी देते हैं। कॉल बेल दबाते ही छोटा भाई दरवाजा खोलता है। सुभद्रा के चेहरे पर परेशानी के भाव देख पूछता है,”क्या बात है मौसी, परेशान नजर आती हैं?”
 “बाबू ,मेरे पति बीमार हैं अगले कुछ दिनों तक काम करने नहीं आ पाऊंगी।  महीना पूरे महीने में चार दिन बाकी है। अगर कुछ रुपए काटकर पगार दे देते तो अच्छा होता।”
 मौसी की बातें सुन अंकित बाबू ने कहा, “मौसी,अंकल की तबीयत ठीक नहीं होने से कुछ दिन आप नहीं आ पाएंगी,यही न; मैं पूरे महीने का पगार और एक महीने का अग्रिम आपको देता हूं। अंकल का इलाज करा लेना,और जब अंकल ठीक हो जाएं तो फिर काम पर आ जाना।”
मौसी की आंखें आंसुओं से भर गई।
अंकित बाबू ने पांच हजार रुपए मौसी को देते हुए कहा, “मौसी आपके हाथों बनाए खाना में  घर का स्वाद  मिल जाता है।”
 “बाबू मैं भी संतुष्ट हूं आप दोनों भाई को मेरे हाथों बना खाना पसंद है।”
— निर्मल कुमार दे

निर्मल कुमार डे

जमशेदपुर झारखंड nirmalkumardey07@gmail.com