ये जानवर, वो जान-वर
क्या यह तो
वक्त-वक्त की बात है
या हमेशा ही !
महिलाएँ अपने-अपने
‘वो’ को ‘जान’ कहती हैं,
फिर जान को
वर यानी पति बनाती हैं
यानी घुमा -फिराकर
उस ‘वो’ को ‘जानवर’
कह ही डालती हैं !
होता है सत्संग
और आते हैं
उद्घाटन को
वैसे ‘नेता’,
जिसे सत्संग से
दूर तलक नाता नहीं !
शायद उसने
चंदा जो ज्यादा दिए हैं,
इसलिए तो नहीं !
टैलेंट की यहाँ पहचान
कहाँ हो रही है ?
सिरफ़….
सुंदर कपड़े,
मकान, गुंडई
और तमाशा
करनेवाले को ही
लोग पहचान रहे हैं !
लोग ऐसे दबंगों की ही
कद्र करते हैं,
जिनकी ईमानदारिता
निर्मोही स्थिति लिए है !