कविता

कर्मफल

यह विडंबना ही तो है
कि सब कुछ जानते हुए भी
हम अपने कर्मों पर
ध्यान कहाँ देते हैं,
विचार भी तनिक नहीं करते हैं।
बस ! फल की चाहत
सदा रखते हैं,
हमेशा अच्छे की ही चाह रखते हैं।
सच तो यह है कि
हमारे कर्मों का पल पल का
हिसाब रखा जाता है,
जो हमारी समझ में नहीं आता है।
जैसी हमारी कर्मगति है
उसी के अनुरूप कर्मफल
कुछ इस जन्म में मिलता जाता है
तो कुछ अगले जन्म में भी
हमारे साथ जाता है।
हमें अहसास तो होता है
पर अपने कर्मों पर हमारा
ध्यान ही कब जाता है?
संकेत भी मिलता है
पर इंसान कितना समझता है
या समझना ही नहीं चाहता है
बस उसी का कर्मफल
समयानुसार हमें मिलता जाता है।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921