हाइकु
खो रहा देखो
संस्कार मर रहा
संभल जाओ।
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आधुनिकता
लीलती ही जा रही
निज संस्कार
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दिखावा करे
आधुनिक बनता
संस्कार खोता।
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आज की शिक्षा
नहीं दे पा रही है
संस्कार दीक्षा।
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माता पिता भी
खुद भूल रहे हैं
बच्चे न दोषी।
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मानसिकता
समाज का दूषित
दोष किसका ।
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संस्कारहीन
समाज में पूजित
विडंबना है।
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बहुत खूब.
बहुत सुंदर रचना सर जी