हाइकु/सेदोका

हाइकु

खो रहा देखो
संस्कार मर रहा
संभल जाओ।
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आधुनिकता
लीलती ही जा रही
निज संस्कार
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दिखावा करे
आधुनिक बनता
संस्कार खोता।
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आज की शिक्षा
नहीं दे पा रही है
संस्कार दीक्षा।
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माता पिता भी
खुद भूल रहे हैं
बच्चे न दोषी।
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मानसिकता
समाज का दूषित
दोष किसका ।
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संस्कारहीन
समाज में पूजित
विडंबना है।
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*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921

2 thoughts on “हाइकु

  • चंचल जैन

    बहुत खूब.

  • भानुप्रताप कुंजाम 'अंशु'

    बहुत सुंदर रचना सर जी

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