कहनेवाले सनकी और सड़े क्यों हैं
तुम मुझे मिलो
या न मिलो !
पर तुम्हारी पल्लू का स्पर्श
मिलती रहे प्रतिदिन !
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मैं भी हुआ हूँ
लब-हादसे का शिकार,
सपनो के हसरतों ने
किया व्यभिचार !
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बहुत कोमल हैं
पँखुड़ियाँ
तुम्हारे फूल की-
पर विचारों की
भूमि तेरी;
इतनी कट्टर,
अनुर्वर क्यों है ?
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शादी हो या ना हो,
दीगर बात है;
पर कनखियों से
प्यार होती रहे !
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हर वो स्पर्श पाप है-
जो शर्त्त, शादी
या कॉन्ट्रैक्ट से
प्राप्त होते हैं !
अच्छा हूँ,
पर दिल है
कि मानता नहीं !
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भारत में गरीबी
‘अंध’ आस्था के
कारण है
मेरे गरीब
सगे-सम्बन्धी
कर्ज़ लेकर
आस्था को
जीवित रखे हुए हैं !
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मुझे मूरख,
पागल
और न जाने
क्या-क्या कहा ?
कहनेवाले भी आखिर,
सनकी
और सड़े क्यों है ?