पद्य साहित्यहाइकु/सेदोका

पर्यावरण (20 हाइकु)

1.
द्रौपदी-धरा

दुशासन मानव

चीर हरण।

2.

पाँचाली-सी भू

कन्हैया भेजो वस्त्र

धरा निर्वस्त्र।

3.

पेड़ ढकती

ख़ामोश-सी पत्तियाँ

करें न शोर।

4.

वृद्ध पत्तियाँ

चुपके झरी, उगी

नई पत्तियाँ।

5.

पुराना भूलो

नूतन का स्वागत

यही प्रकृति।

6.

पत्तियाँ नाची

सावन की फुहार

पेड़ हर्षाया।

7.

प्रकृति हाँफी

जन से होके त्रस्त

देगी न माफ़ी।

8.

कैसा ये अंत

साँसें बोतल-बंद

खरीदो, तो लो।

9.

मानव लोभी

दुत्कारती प्रकृति –

कब चेतोगे?

10.

कोई न पास

साइकिल उदास,

गाड़ी ही ख़्वाब।

11.

विषैले प्राणी

विषाणु व जीवाणु

झपटे, बचो!

12.

पीके ज़हर

हवा फेंके ज़हर,

दोषी मानव।

13.

हवा व पानी

सब हैं प्रदूषित,

काया दूषित।

14.

दूरी है बढ़ी

प्रकृति को असह्य,

झेलो मानव।

15.

प्रकृति रोती

मानव विनाशक

रोग व शोक।

16.

असह्य व्यथा

किसे कहे प्रकृति

नर असंवेदी।

17.

फैली विकृति

अभिमानी मानव

हारी प्रकृति।

18.

दुनिया रोई

कुदरत भी रोई,

विनाश लीला।

19.

पर्यावरण

प्रदूषण की मार

साँसें बेहाल।

20.

धुँध या धुँआ,

प्रदूषित संसार,

समझें कैसे?

– जेन्नी शबनम (5. 6. 2021)

(विश्व पर्यावरण दिवस)

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