सामाजिक

जुबान तेज या तलवार

पुरानी कहावत है कि जुबान कैंची की तरह चलती है और कतर कतर बात को काटती रहती है। ये कहावत उन पर लागू होती है जो बिना सोचे विचारे अनावश्यक रुप से औरों की बातचीत के मध्य कूदते रहते हैं। जुबान को अनेक तरह की उपमाओं से भी नवाजने का प्रचलन है,जैसे तीखी जुबान,मीठी जुबान, प्यारी जुबान, सम्मोहित करने वाली जुबान,शहद भरी जुबान, जहरीली जुबान, नश्तर चलाने वाली जुबान, बात कतरने वाली जुबान आदि आदि।
जहाँ तक जुबान और तलवार की तुलना का प्रश्न है, तो दोनों ही अस्त्र हैं। दोनों ही तीक्ष्ण धार वाले और परिणाम बदलने वाले हैं। दोनों की वार करने की और मारक क्षमता भी अपने आप में बेजोड़ होती है और दोनों से ही घाव बहुत गहरे लगने के साथ ही सबकुछ परिमार्जित करने में अव्वल हैं।बस तलवार का घाव दिखता है,जबकि जुबान का घाव अदृश्य रहता है।
तलवार लौह धातु की बनी, वजन में भारी होने के कारण बहुत गहरे तक घाव करने में सक्षम होती है।
किन्तु, जुबान तलवार की तुलना में ज्यादा ताकतवर और ज्यादा गहरा घाव करने वाली बहुत ही तेज मीठी अथवा तीखी भी होती है। होने को तो जुबान वजन में बहुत ही हल्की और बिना हाड़-मांस की लचीली और पिलपिली सी होती है,परन्तु उसके शस्त्र कड़वे और कटु शब्दों के बने होतें हैं जिनके वार शत्रु को बहुत अधिक दूर रहकर भी हानि पहुंचाने में सक्षम होते हैं। इनका निशाना भी सधा हुआ और पक्का होता है, जो सीधे दिल में जाकर लगता है और शत्रु पीड़ा से तिलमिला और बौखला उठता है। यह इतना गहरा घाव करता है कि जीवनभर नहीं भरता। तलवार का घाव तो समय के गुजरने के साथ-साथ भर भी जाता है और कभी न कभी पूरी तरह ठीक भी हो जाता है परन्तु जुबान से लगाया गया घाव कभी नहीं भरता, चाहे कितना ही लम्बा समय गुजर जाए या लाख जतन कर लिए जाएं।
इस बात से शायद ही कोई सहमत न हो कि तलवार से कहीं ज्यादा घातक और तेज जुबान है। क्योंकि कई बार जुबान का वार इतना घातक होता है कि इसका घाव प्रत्यक्ष दिखाई न देने पर भी सामने वाले की जीवनलीला तक समाप्त कर देने का कारण बन जाता है।
इसके अलावा तलवार सिर्फ घाव देती है लेकिन जुबान न दिखने वाले मारक घाव देने के साथ-साथ मरहम लगाकर शीतलता प्रदान करने का भी काम बखूबी कर सकती है जिसे कर पाना तलवार के वश की बात नहीं। वो तो केवल काटना और मार डालना ही कर सकती है जबकि जुबान मारना और बचाना दोनों कर सकती है।
इस तरह यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि जुबान तलवार से अधिक तेज होती है। जुबान का घाव न दिखने के बाद भी पीड़ि़त व्यक्ति के लिए नासूर बन जाता है और सिर्फ एक ही व्यक्ति नहीं व्यक्तियों, परिवार, समूह तक को प्रभावित कर सकने में सक्षम होता है।
आ.बजरंग लाल केजड़ीवाल (तिनसुकिया, असम) के शब्दों में
“तलवार बड़ी घातक करती गहरे घाव तन पर,
जुबां हृदय विदिर्ण कर मारती तिल तिल कर।”

 

*सुधीर श्रीवास्तव

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