लघुकथा

एक अनमोल डिनर

लॉक डाउन। परिवार के सदस्य आउट ऑफ स्टेशन। बाई अवकाश पर। होटल बंद। किचन में वृद्धावस्था में कुछ पकाने की हिम्मत नहीं। आपातकालीन स्थिति में पड़ोसी की एक बेटी को फोन किया। अंकल जी, दस मिनट बाद आ जाएं। स्मार्ट फोन मत लेकर आना प्लीज। पहुंचा। किचन से खुशबू आ रही थी। भोजन की थाली में परांठे , टमाटर की चटनी , आलू का रायता। आश्चर्यचकित था। इतनी जल्दी इतना कुछ। तृप्त होकर खाया। इतनी जल्दी तुम ने इतना कुछ कैसे कर लिया बेटी। मुस्कराकर बोली = अंकल जी , बस आटा लगाते हुए हल्दी लाल मिर्च नमक जीरा अजवायन मिला दिया। हो गए मसाले वाले पराठें तैयार। टमाटर के टुकड़े कर चीनी लाल मिर्च डाल दी। टमाटर की मीठी चटनी तैयार। सबके लिए आलू के परांठे बनाए थे। उबला हुआ एक आलू बच गया था। टुकड़े कर दही में नमक लाल मिर्च भुना जीरा डाल कर आलू का रायता तैयार। कम से कम समय में सादगी पूर्ण भोजन आपकी सेवा में प्रस्तुत कर दिया। शाबाश बेटी। पर फोन लाने के लिए क्यों मना किया। अंकल जी , भलाई के गीत नहीं गाए जाते। आप पिक सेल्फी लेकर सोशल मीडिया पर मेरी बड़ाई करते। मुझे संकोच होता है। मैं चुपचाप रह कर भलाई करने में विश्वास रखती हूं। मेरी पलकें भीग गईं। वातावरण को हल्का करने के लिए कहा- स्वीट डिश तो रह ही गई। बोली- पूज्य अंकल श्री , मिठाई की दुकान बंद है। आइस क्रीम की बेकरी भी बंद है। घर में सूजी बेसन भी नहीं। स्वीट डिश संभव नहीं , सॉरी। मैने कहा = आटा घी चीनी तो है ना। बेटी बोली- अरे वाह अंकल जी , क्या आइडिया है। तुरंत किचेन में गई। आटे का हलवा इतना स्वादिष्ट था कि उसके आगे काजू बादाम की बर्फी भी हल्की ही होती। मीठा मुंह कर भीगी पलकों से अन्नपूर्णा बेटी को आशीर्वाद देकर आया। एक अनमोल डिनर के लिए मेरे पास शब्द ही नहीं थे।

— दिलीप भाटिया

*दिलीप भाटिया

जन्म 26 दिसम्बर 1947 इंजीनियरिंग में डिप्लोमा और डिग्री, 38 वर्ष परमाणु ऊर्जा विभाग में सेवा, अवकाश प्राप्त वैज्ञानिक अधिकारी