रिश्तों में परिवर्तन
अक्सर रिश्तों को
रोते हुए देखा है,
अपनों की ही बाँहो में
मरते हुए देखा है।
टूटते, बिखरते; सिसकते,
कसकते
रिश्तों का इतिहास,
दिल पे लिखा है बेहिसाब
प्यार की आँच में
पक कर पक्के होते जो,
वे कब कौन सी आग में
झुलसने लगते हैं,
झुलसते चले जाते हैं
और राख हो जाते हैं
रिश्तों का ये परिवर्तन ,
अपनों ने दिखाया हैं
मैंने देखे हैं कुछ रिश्ते
धन-दौलत पे टिके होते हैं,
कुछ चालबाजों से लुटे होते हैं –
गहरा धोखा खाए होते हैं
कुछ आँसुओं से खारे
और नम हुए होते हैं..,
कुछ रिश्ते अभावों में पले होते हैं –
स्वार्थ पर बनें रिश्ते बुलबुले
की तरह उठते हैं
कुछ देर बने रहते हैं
और गायब हो जाते हैं
फिर भी रिश्ते बनते हैं,
बिगड़ते हैं,
जीते हैं,मरते हैं लड़खड़ाते हैं,
लंगड़ाते हैं तेरे मेरे उसके द्वारा
घसीटे जाते हैं,
कभी रस्मों की बैसाखी
पे चलाए जाते है.
रिश्तों में परिवर्तन ,
अपनों ने ही दिखाए हैं।
— डिम्पल राकेश तिवारी