कविता

भूला इंसान

बड़ा अजीब सा लगता है
कि हम विकास के पथ पर
आगे बढ़ रहे हैं,
आधुनिकता को विकास का
पैमाना मान रहे हैं,
पर हम अपनी ही संस्कृति
सभ्यता और परम्पराओं से भी
दूर हुए जा रहे हैं,
मगर अफसोस तक भी
नहीं कर रहे हैं।
अफसोस करें भी तो कैसे करें?
जब हम इंसानियत और
संवेदनाओं से बहुत दूर जा रहे हैं।
शिक्षा का स्तर बढ़ा
रहन सहन का स्तर भी,
परंतु बहुत शर्मनाक है कि
हमारी संवेनशीलता का स्तर
लगातार गिर रहा है,
गैरों के लिए तो किसी को
जैसे दर्द ही नहीं हो रहा है,
अपनों के लिए भी अब इंसान
लगता जैसे गैर हो रहा है।
इंसान इंसानियत भूल रहा
सच कहूँ तो ऐसा
बिल्कुल नहीं है,
बल्कि सच तो ये है कि
इंसान शायद भूल रहा है कि
वो भी एक अदद इंसान है।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921