कविता

दिल से दिल तक

सुनो दिल की बातों से भी,
अब यह दिल नहीं भरता  ।
कैसी हकीकत है ये हमारी,
कि अब ख्वाब देखने का भी,
दिल नहीं करता।
यूं तो बेहिसाब सी मोहब्बत है तुमसे।
कि ये भी  तुम ही महसूस
कर लो ना कि अब इजहार करके ,
जताने का भी,दिल नहीं करता।
यूं तो बंद आंखों से देखे हुए ,
ख्वाब भी पूरे होते हुए देखें हैं हमने,
कि  अब खुली आंखों से  भी,
कुछ देखने का दिल नहीं करता।
भटक गया है तू ,
या भटक गई थी  मैं।
जो इतना प्यार कर बैठे,
कि अब ख्वाब में   भी,
इसे इनकार करने का,
अब यह दिल नहीं करता।
सुनो दिल की बातों से भी

अब यह दिल नहीं भरता।

— रानी कुशवाह

रानी कुशवाह

भोपाल, मध्य प्रदेश