ग़ज़ल (आईने रूबरू कर)
आइने को रूबरू कर |
रूह को तू सुर्खरू कर |
ज़िंदगी का क्या ठिकाना –
नफ़रतें दिल से रफू कर |
ये जहाँ जिसने बनाया –
बस उसी की आरज़ू कर |
क्या किसी से बात करना-
बस उसी से गुफ्तगू कर |
प्यार रब है प्यार दुनियाँ-
प्यार की तू जुस्तज़ू कर |
प्यार है ऐसा खजाना –
प्यार को अब चारसू कर|
दर्द मंदो के दिलों मे –
हौसला पुरनूर तू कर |
“मृदुल’ दुख की हर लहर को,
हौसलों से दूर तू कर ।
— मंजूषा श्रीवास्तव ‘मृदुल’