गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल (आईने रूबरू कर)

आइने को रूबरू कर |
रूह को तू सुर्खरू कर |

ज़िंदगी का क्या ठिकाना –
नफ़रतें दिल से रफू कर |

ये जहाँ जिसने बनाया –
बस उसी की आरज़ू कर |

क्या किसी से बात करना-
बस उसी से गुफ्तगू कर |

प्यार रब है प्यार दुनियाँ-
प्यार की तू जुस्तज़ू कर |

प्यार है ऐसा खजाना –
प्यार को अब चारसू कर|

दर्द मंदो के दिलों मे –
हौसला पुरनूर तू कर |

“मृदुल’ दुख की हर लहर को,
हौसलों से दूर तू कर ।

— मंजूषा श्रीवास्तव ‘मृदुल’

*मंजूषा श्रीवास्तव

शिक्षा : एम. ए (हिन्दी) बी .एड पति : श्री लवलेश कुमार श्रीवास्तव साहित्यिक उपलब्धि : उड़ान (साझा संग्रह), संदल सुगंध (साझा काव्य संग्रह ), गज़ल गंगा (साझा संग्रह ) रेवान्त (त्रैमासिक पत्रिका) नवभारत टाइम्स , स्वतंत्र भारत , नवजीवन इत्यादि समाचार पत्रों में रचनाओं प्रकाशित पता : 12/75 इंदिरा नगर , लखनऊ (यू. पी ) पिन कोड - 226016