चराग़ उमीदों के नये – जला गाया कोई दिल में
मिला तो नगी ख़ुद – लेकिन अहसास जगा गया दिल में
शिकवा हम को नही कोई – ना ही शिकायत किसी से
मुक़दर में लिखा था जो – बसा गया कोई दिल में
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मिसें गे फिर कभी – अगर मिलना लिखा है क़िसमत में
नेमत यिह इनतेज़ार की – बस गई है हमारे दिल में
बढ़े नाज़ों से हम ने तो – पाला था अपनी मोहब्बत के दरद को
दरद अपने दिल के भी – बसा गया हमारे दिल में
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परेशान हम बुहत थे – पैहले ही जुदाई के ग़म से
बे मज़ा और ज़िनदगी में – मिला गया कोई दिल में
वादे जो किये थे आप ने – भुला दिये सब आप ने
जफ़ा अपने दर्द की भी – बसा गया हमारे दिल में
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पथर बनाया अपने दिल – और मोहब्बत की आप से — मदन
बिना ख़ौफ़ लैहरों के – ढाल कश्ती को दिया भँवर में
मोहब्बत किस क़दर है हम को – अहसास हमारे जानते हैं
बदल भी जाए अगर नज़रिया – तो दरद बस के रैह जाते हैं दिल में