काँटों से भरी शाखों पर – लगे फूलों को
चूम लेती हैं तितलियाँ – और उनके पर नहीं छिलते
बेवजह ही लोग – नाराज़ हो जाते हैं हमसे
क्यूँकि सौदा अपने दिल का – दिल हार कर नहीं करते
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कहानियाँ तो बुहत सारी हैं – परवानों के जलने की
मगर शमा के दर्द के बारे में – कोई नहीं लिखते
वजह तो ज़रूर है कोई – परवानों के जलने की
बेवजह तो यूं ही – शमा पर परवाने नहीं जलते
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हसीनों की आँखों से – छलकते नही आँसू
भिछडते हैं जो एक बार – वोह वापस नही मिलते
रूह छलनी हो जाती है – जफ़ाओं की मार से
इसी लिये तो हम – बे वफ़ाओं से मोहब्बत नही करते
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तयार तो हैं हम हमेशा – मोहब्बत का खेल ऱेलने के लीये
मगर अनाओं की वजह से – दिल आपस में नही मिलते
कया करो गे तुम – सुन कर दासतान हमारी मोहब्बत की
बयान हो गई नही हम से – जुबान ख़ामोशी की आप नही समझते
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ठोकर ना मारो कभी किसी को – राह का पथर समझकर ‘मदन’
दीवारों में आज कल हम – लोगों को नही चुनते
ग़म दिलों के छुपे होते हैं – शायर के लफ़ज़ों में
ऐसे ही नही तो शायर – ग़ज़लों को हैं लिखते