आचरण सदैव शुद्ध रखता,सब से बड़ा स्वर्ग यही है।
जन जन के हृदय में बसता,सब से बड़ा स्वर्ग यही है।
पैर पखारे नयनों से नित, माता पिता से मधुर बोले।
सुश्रूषा जी जान से करता, सब से बड़ा स्वर्ग यही है।
धर्म कर्म की मर्यादा पाले, शिष्टाचारी नम्रर हो मन से,
दिन दुखी के दुख जो हरता,सब से बड़ा स्वर्ग यही है।
पूजा पाठ ध्यान सिमरन से, नित ईश्वर को है आराधे,
बुरा कर्म करने से डरता, सब से बड़ा स्वर्ग यही है।
काम क्रोध लोभ मोह रहित हो,मेरा मेरी मन से त्यागे,
दीन दुखी की झोली भरता, सब से बड़ा स्वर्ग यही है।
भाई राम लक्ष्मण सरीखा, मिलता है जो बाँह पसारे,
बिछुड़ने से नैन झर झरता, सब से बड़ा स्वर्ग यही है।
बच्चे होते आज्ञाकारी, पतिव्रता नारी जिस घर में,
फुलवाड़ी सा नित सँवरता, सब से बड़ा स्वर्ग यही है।
— शिव सन्याल