गीतिका/ग़ज़ल

सब से बड़ा स्वर्ग यही है

आचरण सदैव शुद्ध रखता,सब से बड़ा स्वर्ग यही है।
जन जन के हृदय में बसता,सब से बड़ा स्वर्ग यही है।
पैर पखारे नयनों से नित, माता पिता से  मधुर  बोले।
सुश्रूषा  जी जान से करता, सब से बड़ा स्वर्ग यही है।
धर्म  कर्म की मर्यादा पाले, शिष्टाचारी नम्रर हो मन से,
दिन दुखी के दुख जो हरता,सब से बड़ा स्वर्ग यही है।
पूजा पाठ ध्यान सिमरन से, नित ईश्वर को है आराधे,
बुरा  कर्म  करने  से डरता, सब से बड़ा स्वर्ग यही है।
काम क्रोध लोभ मोह रहित हो,मेरा मेरी मन से त्यागे,
दीन दुखी की झोली भरता, सब से बड़ा स्वर्ग यही है।
भाई  राम लक्ष्मण सरीखा, मिलता है जो बाँह पसारे,
बिछुड़ने से नैन झर झरता, सब से बड़ा स्वर्ग यही है।
बच्चे    होते   आज्ञाकारी, पतिव्रता नारी जिस घर में,
फुलवाड़ी सा नित सँवरता, सब से बड़ा स्वर्ग यही है।
— शिव सन्याल

शिव सन्याल

नाम :- शिव सन्याल (शिव राज सन्याल) जन्म तिथि:- 2/4/1956 माता का नाम :-श्रीमती वीरो देवी पिता का नाम:- श्री राम पाल सन्याल स्थान:- राम निवास मकड़ाहन डा.मकड़ाहन तह.ज्वाली जिला कांगड़ा (हि.प्र) 176023 शिक्षा:- इंजीनियरिंग में डिप्लोमा लोक निर्माण विभाग में सेवाएं दे कर सहायक अभियन्ता के पद से रिटायर्ड। प्रस्तुति:- दो काव्य संग्रह प्रकाशित 1) मन तरंग 2)बोल राम राम रे . 3)बज़्म-ए-हिन्द सांझा काव्य संग्रह संपादक आदरणीय निर्मेश त्यागी जी प्रकाशक वर्तमान अंकुर बी-92 सेक्टर-6-नोएडा।हिन्दी और पहाड़ी में अनेक पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। Email:. [email protected] M.no. 9418063995