कविता

तन्हाई

ये तन्हाई
अकेलेपन से दोस्ती कर ली मैंने
तन्हाइयों को ही साथी
बना लिया  है अब तो..
इसी अकेलेपन में   कभी कभी
कुछ पल के लिए साथी बन कर
आ जाते हैं  वो लम्हे जो
हर दम बच्चों को धमाचौकड़ी मचाते
उनकी  फरमाइशें पूरी करते
हर पल व्यवस्तता का
रोना रोते थे।

कभी मेहमानों के आने से
घर ठहाकों की आवाज़ से
गुलज़ार रहता था..
तब वो शोर लगता था
अब लगता है वो ही संगीत था
जिसको सुनने को कान तरस गए।

और वो मीठी यादें कभी कभी
तन्हाईओं में चुपके से आ कर
मेरे कान में धीरे से कुछ
खुसर फुसर कर जाती हैं
और मैं तन्हाई को भूल कर
उन आवाजों को सुनने की
नाकाम कोशिश करती हूं।

कभी बंद आंखों से
बच्चों को फिर से  लड़ते झगड़ते
और घर को उथल पुथल करते
देखना चाहती हूं..
लेकिन  ज्यों ही आँखे खोलती हूं
कुछ ही पल में वो मीठी यादें
आंखों से ओझल हो कर
मुझे फिर से  उसी अकेलेपन की ओर
वापिस धकेल देती हैं..
और बाकी रह जाती है
फिर वो ही  कभी ना खत्म होने वाली
तन्हाई उदासी और अकेलापन..!!

— रीटा मक्कड़