ग़ज़ल
यूं मोहब्बत में हमसे इबादत हुई
वो इंसान था और खुदा हो गया।
रूह छूने का उसमें हुनर आ गया
जमी पर वो सबसे जुदा हो गया।
इतनी शिद्दत से उसको पुकारा है के
नाम निकला लबों से दुआ हो गया।
इस कदर मेंरे दिल में समाया है वो
हम भी हैरान है के ये क्या हो गया ।
हर घडी मुझको उसकी जरुरत है यूं
जैसे हर मर्ज की वो दवा हो गया।
उसकी तारीफ में और क्या मैं कहूं
जब से आंखों में देखा नशा हो गया।
— पावनी जानिब