बुरी है आग पेट की
छात्र या छात्राएँ; जहाँ विद्यालय में सामान्यतः 6 घंटे रहते हैं, जबकि घर पर 18 घंटे रहते हैं । यह कैसी दोहरी नीति है, 6 घंटे वाले को दोषी ठहराते हैं, किन्तु 18 घंटे ‘अभिभावक’ के पास रहने पर भी यानी साक्षर अभिभावक को भी दोषी नहीं मानते हैं! ऐसे में शिक्षकों में हीनभावना भरती चली जाती है।
MP, MLA, MLC और किसी राजनीतिक दलों के प्रखंड अध्यक्ष तक के लिए MA पास योग्यता निर्धारित हो ! शिक्षा पदाधिकारी विद्यालय आएंगे और बिना पूछे हेडमास्टर की कुर्सी पर बैठ जाएंगे, फिर तुरंत फरमान देंगे- ‘टीचर्स अटेंडेंस लाइये !’
फिर किसी शिक्षक की अनुपस्थिति अथवा CL पिटिशन पर मीन-मेख शुरू और लाल-हरे कलम दौड़ा देंगे! फिर शिक्षकों की परेड शुरू ! माना शिक्षा पदाधिकारी ‘प्रशासक’ हैं, किन्तु उन शिक्षकों के अभिभावक भी तो हैं! उन्हें ऐसे कृत्य से दूर रहने चाहिए, ताकि उनके कृत्य ‘हॉरर’ न लगे!
एक सुंदर युवती किसी कुरूप अथवा काला युवक से शादी तो दूर उसे ‘ I Love You ‘ तक क्यों नहीं कहती है?
जज, PM, CM बनने की अंतिम आयु 60 वर्ष से अधिक ना हो कि शिक्षक की सेवानिवृत्ति 60 वर्ष में होती हैं, इस उम्र के बाद IQ पर असर पड़ता है!
कवि-गीतकार स्व. शैलेन्द्र की कवितांश-
बुरी है आग पेट की,
बुरे हैं दिल के दाग़ ये,
न दब सकेंगे,
एक दिन बनेंगे
इन्क़लाब ये,
अगर कहीं है स्वर्ग तो
उतार ला ज़मीन पर।
गिरेंगे जुल्म के महल,
बनेंगे फिर नवीन घर
तू ज़िन्दा है तो
ज़िन्दगी की जीत में
यकीन कर,
अगर कहीं है स्वर्ग तो
उतार ला ज़मीन पर।