कविता

जादू भी यकीन लगता था

जादू भी यकीन लगता था …,
उभरती उम्र की हसीं रास्ते में !
अब हकीकत भी शक के दायरे में है,
उम्र की दहलीज़ पर पड़ी गुलदस्ते में !!
खुद पर यकीं रख ऐ क़ाबिल दोस्त..,
क्या ढूँढ रहा है तू उस फरिश्ते में….!
कहाँ होते हैं पंछीयों के पास नक्शे..,
मंजिल ढूँढ ही लेते हैं पंछी रास्ते में !!
बस्ती बस्ती में हर एक हस्ती कैद है…,
फिर से जिंदगी मंहगा दौलत सस्ते में ।
— मनोज शाह ‘मानस’

मनोज शाह 'मानस'

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