याद बहुत आते हैं
याद बहुत आते हैं
याद बहुत आते हैं मुझको मां और मेरा गांव,
याद आते हैं वो पनघट के दौर,
वो रस्सी, पिट्ठुल, कंचे और भंवरे खेलने के ठौर
वो निरागस मासूम बचपन,
छत पर खाट और दादी-दादा की कहानियां सिरमौर
ज्ञान की प्यास,
अपने बलबूते पर आगे बढ़ने का ध्यास
वो पीपल की छैंयां वो अमराई का बौर
माता-पिता के गुस्से में भी करना प्यार का गौर
देश-समाज के लिए हित की चाहत लिए पौर
उछलते-कूदते आंगन में खाना हंसते-हंसते दो कौर
वो गलबहियां-अठखेलियां वो बचपन का तौर
याद बहुत आते हैं,
याद बहुत आते हैं,
याद बहुत आते हैं.