धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

नवरात्रि के मायने

आदिशक्ति जगत जननी के नौ रुपों की पूजा का पर्व है नवरात्रि।
मगर क्या सिर्फ माँ की पूजा आराधना मात्र ही नवरात्रि की मान्यता के लिए काफी है। बिल्कुल नहीं।
वास्तव में मन, वचन और कर्म से जब तक माँ की पूजा नहीं की जाती, ऐसी पूजा का कोई मतलब नहीं है और न ही प्रतिफल मिलने वाला है।
किसी भी पूजा पाठ, व्रत, अनुष्ठान का औचित्य तभी सार्थक है, जब हमारा. मन भी पवित्र है,विचार शुद्ध हों और कर्म स्वार्थ भाव न लिए हों।मुँह में राम बगल में छुरी जैसे भाव लेकर किसी भी पूजा पाठ का दिखावा मात्र करना नुकसान ही पहुंचाएगा।
माँ के विभिन्न रुपों की पूजा नारी शक्तियों को समर्पित है, परंतु नारियों के लिए हमारे मन में कितनी पवित्रता है,उनकी सुरक्षा की हमें कितनी चिंता है, दहेज, छेड़छाड़, बलात्कार, हत्या और अनेकानेक अपराध बोध से हम कितना ग्रस्त हैं।यह सोचने का विषय है।
जरूरत इस बात की है कि नवरात्रि को महज औपचारिक न बनाएं, बल्कि इसकी सार्थकता भी सिद्ध करें, व्रत ,पूजा, पाठ करें न करें, मगर आदिशक्ति के नाम पर पहले खुद तो गुमराह होने से बचें। तभी नवरात्रि पर्व का कोई महत्व है अन्यथा सिवाय कोटापूर्ति के और कुछ नहीं है। नारी शक्ति का महत्व उनकी पूजा से नहीं बल्कि उनकी सुरक्षा, संरक्षा और सम्मान में निहित है, जिसका दायित्व सरकार और समाज से पहले हमारा ,आपका ,हम सबका है। यही कर सकें तो ये आदिशक्ति की विशेष पूजा से कम नहीं होगी और तभी नवरात्रि की महत्ता शीर्ष पर होगी, अन्यथा……..।
।।जय माता दी।।

*सुधीर श्रीवास्तव

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