कविता

याद बहुत आते हैं

याद बहुत आते हैं
याद बहुत आते हैं मुझको मां और मेरा गांव,
याद आते हैं वो पनघट के दौर,
वो रस्सी, पिट्ठुल, कंचे और भंवरे खेलने के ठौर
वो निरागस मासूम बचपन,
छत पर खाट और दादी-दादा की कहानियां सिरमौर
ज्ञान की प्यास,
अपने बलबूते पर आगे बढ़ने का ध्यास
वो पीपल की छैंयां वो अमराई का बौर
माता-पिता के गुस्से में भी करना प्यार का गौर
देश-समाज के लिए हित की चाहत लिए पौर
उछलते-कूदते आंगन में खाना हंसते-हंसते दो कौर
वो गलबहियां-अठखेलियां वो बचपन का तौर
याद बहुत आते हैं,
याद बहुत आते हैं,
याद बहुत आते हैं.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244