जीवन के अनमोल बरस
गृहस्थी को समर्पित कर चुकी
बेबस नारी ने कहा
अब पानी सर से गुजर चुका है
सहनशीलता का बांध टूट चुका है
इतना कुछ अर्पण करने के बाद
क्या मिला सिर्फ तिरस्कार
बस अब और नहीं
इन यातनाओं का
कोई छोर नही तोड़ती हूं हर रिश्ता
फरेब का पाना चाहती हूं
खुशियां सभी तोड़कर
बेड़ियां अपनी पाना चाहती हूं
अपना स्वच्छंद आकाश
जीना चाहती हूं केवल
स्वयं के लिए रचना चाहती हूं
एक इतिहास।
— मंजु कट्टा ‘सजल’