कविता

कुछ तो बोलो न

आखिर कब तक मौन रहोगे
कब तक यूँ बेचैन रहोगे
तटबंध सह सकेंगे सैलाबों के
कब तक भला महफूज रहेंगे।
मन के गुबार बाहर कर दो
अपनी पीड़ा को स्वर दो,
भला नहीं इससे कुछ होगा
अब तुम अपना मौन तोड़ दो।
बेचैनी से बच जाओगे
घुट घुट जीने से बच जाओगे
अब सारे तटबंध खोल दो
आखिर अब कुछ तो बोल दो।
मौन नहीं कुछ हल देगा
बस पीड़ा को स्वर देगा
अच्छा है खुद स्वर दे दो
मौन छोड़ तुम ही बोल दो।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921