कहानी

धर्म  संकट 

इस एक शब्द में अनेक दुविधाएं निहित हैं। या यूं कहिये कि यह एक सहस्त्र फन वाला सर्प है। अनेक प्रश्न मुंह बाए आपको घूरते हैं। और आप ? —- निरुत्तर ,सकते की हालत में ! धर्म संकट ?  किसका ? कहाँ ? क्यों ? किसलिए ? — परन्तु अंत में , अरे वह क्या होता है ? धर्म तो निरंतर है और जो निरंतर है वह समय के अनुरूप बदलता है। देश काल के अनुरूप बदलता है। व्यक्तिगत इच्छाओं के अनुरूप बदलता है। या फिर डंडे के जोर बदल दिया जाता है।

खैर औरों की छोड़िये। इस वाकये में दुविधा में उलझे दो जने हैं , माइकल और सिम्मी । दोनों एक ही स्कूल में पढ़ाते थे। प्रारंभिक शिक्षा के क्षेत्र में नन्हे बालकों को मातृ सदृश्य वात्सल्य मिले, इसलिए स्त्रियों को ही अध्यापिका नियुक्त किया गया था। परिचारिकाएं भी अधिकतर बच्चों की माएँ ही बन जाती थीं। इतनी स्त्रियों के बीच एक जवान जहान पुरुष का होना दबी घुटी हिकारत की नज़र से देखा जाता था। माइकल के हिस्से में भी उपहासयुक्त टिप्पणियों की भरमार थी। अक्सर वह ईसाई धर्म से अलग धर्मो के विषय में बताता। शुद्ध शाकाहारी भोजन बनाता और खाता। अकेला ही रहता। कोई उसे वियर्ड (अजीब ) बताता तो कोई हिजड़ा।

असल में  माइकल एक सामान्य ,गंभीर ,साफ़ सुथरे चरित्र का  एकाकी बन्दा था। अपना काम बखूबी करता था। बच्चे उसको मानते थे। ऐसा नहीं था कि उसको स्टाफरूम में बैठी एक दर्जन स्त्रियों से कोई परहेज़ था, पर लंच टाइम में भी वह अपने कमरे में ही बना रहता। अन्य पुरुषों की तरह ही उसका हाथ का काम जरा कमजोर बैठता था और सिम्मी ठहरी कला और हस्तकला की इंचार्ज। माइकल को उससे बहुत काम रहता था। जैसे की जब उसकी प्रार्थना सभा में नाटक करवाने की बारी आइ तो सारे मुखौटे सिम्मी से बनवाये। बहुत ज्यादा मेहनत करनी पडी उसे, पर ठीक है ! ठीक है !

जब उजड्ड डेनिस और नैथन दंगा करते ,तो सिम्मी उनको माइकल के हवाले कर देती। अच्छी दोस्ती बन गयी थी। सिम्मी को तली हुई मूंगफली दही के साथ खाते देखकर उसको बहुत अजीब लगा मगर चखने के बाद उसे पसंद आई और वह अक्सर वही खाता । कभी कभी सिम्मी के ही कमरे में बैठकर अपना शाकाहारी भोजन करता । स्टाफ में कई एकल लडकियां थीं मगर माइकल उनको घास नहीं डालता था । शायद इसीलिये वह लोग उसका मज़ाक उड़ाती थीं। उसकी इस उम्र में लड़कियों के प्रति तटस्थता के कारण उसको वह लोग कुछ का कुछ समझती थीं। पर एक दिन बातों बातों में उसने  बताया की उसकी गर्लफ्रेंड बर्मिंघम में वकील है और हर हफ्ते वीकेंड में उससे मिलने लंदन आती है।

अगले साल नए सत्र में उसको जो कमरा मिला वह खेल का पूरा मैदान पार करके आता था। इसलिए सुबह के कॉफी ब्रेक में वह स्टाफरूम में नहीं आता था। पर उस दिन सितम्बर का सुनहरा दिन था और वह चाय की क्यू में ठीक सिम्मी के पीछे खड़ा था। सिम्मी उसे देखकर सहज मुस्कुरा दी। अपनी बारी आने पर झट से दो कप बनाये और एक उसको पकड़ा दिया। मगर वह तो जैसे उधार खाये बैठा था। एकदम उसपर पर बरस पड़ा। पूरे वॉल्यूम पर ज़ोर से बोला-
“तुम हिन्दू हो न ?”
“हाँ ,एक तरह से __ ”
“तुम राम को मानती हो ? ”
“हाँ राम हिन्दुओं का देवता है। क्यों ? ”
“तुम लोग बहुत अत्याचारी हो। मुसलमानों को मारते हो। तुम भूल रहे हो कि इण्डिया मुसलमानो का था। ”
“अरे माइकल ! ये क्या हो गया है तुम्हें सुबह सुबह ? मैं किस तरफ से तुमको धर्मांध नज़र आई ? क्या मैंने जाने अनजाने किसी बच्चे का अपमान किया है ? ”
“तुम्हारे धर्म वाले मस्जिदें तोड़ रहे हैं। तुम उन्हीं को तो शह दोगी ? ”
“कौन सी मस्जिदें ? मुझे इस देश में रहते बीस वर्ष हो गए हैं। मैंने तो नहीं सुना की लंदन में कोई मस्जिद तोड़ी गयी। ”
“बनो मत। तुम लोगों ने इंडिया में मस्जिद तोड़ डाली जो चार सौ साल पुरानी थी। अब उसकी जगह मंदिर बनेगा। राम का। ”
“माइकल मैंने सचमुच कोई ऐसी न्यूज़ नहीं सुनी मुझको समय ही नहीं मिलता। वैसे भी भारत में क्या हो रहा है ,क्या नहीं ,इससे मुझे कोई मतलब नहीं। तुम खुद अपने काम से थक जाते हो तो सोचो  मुझे तो घर जाकर खाना भी बनाना होता है। गृहस्थी भी सम्भालनी होती है। बच्चे हैं मेरे। मैं अकेली तो नहीं रहती तुम्हारी तरह ! ”
“तुम कुछ भी कहो। यह सरासर गलत है। हिन्दू बेहद कट्टर होते हैं। ब्राह्मण जाति बेहद पुरातनपंथी और नृशंस है। धर्म के नाम पर बहुत झगड़ते हैं। मुसलमानो को अछूत समझते हैं। उनका छुआ हुआ  नहीं खाते। ”
“पर मैं तो वैसी नहीं हूँ। शामून की माँ पुलाव बनाकर लाई थी तो हम सबने खाया था यहीं तुम्हारे संग। न ही मैं ब्राह्मण हूँ न कट्टर। तुमको इस तरह मुझको अपमानित करने का कोई हक़ नहीं बनता। ”
सिम्मी रुष्ट होकर अपने कमरे में चली गयी। राम जन्म भूमि के विवाद का उसको कोई इल्म नहीं था। जब तक वह भारत में थी यह विषय किताबों में बंद था। किसी पत्र पत्रिका में भी नहीं पढ़ा था। यह  बहस सब कान लगाकर सुन रहे थे। उनके हाव भाव से लगा कि वह सब माइकल से सहमत थे।  केवल जमीला अली की आँखों में परेशानी और क्षोभ था। शायद वह सिम्मी के पक्ष में थी। खैर छोड़िये। यूं देखिये तो अध्यापिकाएं भी कम गपोड़ियाँ नहीं होतीं। पीठ फिरते ही निंदा में निमग्न हो जाएंगी। स्त्री जाति स्त्री जाति ही रहेगी। मानव स्वभाव सब जगह एक जैसा।

जमीला अली त्रिनिदाद से लंदन आई थीं। जमीला की माँ हस्पताल में नर्स थीं। वहीँ पास में उनको एक फ्लैट मिला हुआ था मगर जमीला माँ से अलग फ्लैट लेकर उसमे रहती थी। कई सालों तक जमीला सायरस के संग रही मगर वह शादी की उलझन से मुक्त रहना चाहता था। फिर जैसा कि अक्सर होता है , इस रिश्ते में बर्फ जमने लगी। जमीला ३५ पार कर चुकी थी। उसको शादी की छतरी के नीचे अपनी ममता को फलीभूत होते देखने की ख्वाहिश थी। सायरस शिफ्टों में काम करता था। अक्सर काम कम होने पर घर बैठ जाता था। बात नहीं जमी। जमीला ने उसको अपना अलग ठिकाना ढूंढने के लिए कह दिया। अत्यधिक पढ़ी लिखी होने के बावजूद उसको अपनी नौकरी में तरक्की नहीं मिली। हर बार जब जगह खाली होती तो कोई गोरी चमड़ी वाली उसके सर पर आ बैठती। इस छद्म नस्लवाद ने उसको बहुत अंतर्मुखी बना दिया था। जबसे सिम्मी ने कदम रखा उनकी गहरी दोस्ती हो गयी। जमीला की वंशावली में केवल एक भाषा का सूत्र था। बिहार प्रान्त से आये गिरमिटिया लोग आपस में विवाह कर लेते थे चाहे हिन्दू हों या मुसलमान। उनमे उन्मुक्त स्वीकारात्मकता थी। एक दूजे का धर्म परिवर्तन आदि नहीं किया जाता था। जमीला के पिता मुस्लिम  थे पर जल्दी ही मर गए थे। माँ मुस्लिम सरनेम लिखती थीं और नानी हिन्दू।

जमीला ने सिम्मी को एक तरह से डाँटा भी और सांत्वना भी दी।
” सिम्मी तुम बहुत कोमल ह्रदय की हो इसलिए माइकल तुम्हारा फायदा उठा गया। तुमको ‘नो ‘ कहना सीखना होगा। तुम्हारे व्यक्तिगत धर्म पर आघात करने की उसकी हिम्मत कैसे पडी। क्या किसी बच्चे को तुमने कुछ कहा था /”
” अरे बिलकुल नहीं। कितने साल से तो पढ़ा रही हूँ। जब असेंबली में मुसलमान बच्चे हॉल के बाहर बैठे रहते हैं तब मैं ही उनकी देखभाल के लिए नियुक्त रहती हूँ। उनकी माएँ अपनी सभी कहानियां मुझको ही सुनाती हैं। कभी मुझे नहीं लगा कि वह लोग विधर्मी हैं। या कोई और। ”
” अब अगली बार उसको चुप करा देना। जस्ट शट हिम अप।” सिम्मी को पक्का करके जमीला चली गयी। सिम्मी के गरमा गरम आंसू उसका गुस्सा धोते रहे। जमीला सही कहती है। सिम्मी कभी भी पलट वार नहीं कर पाती। उसे उसी वक्त माइकल को चुप कराना नहीं आया। बेवकूफ की बेवकूफ रही। अब बैठी टसुए बहा रही है। अरे तभी कहती मेरे धर्म से तुझको क्या मतलब। पर अब क्या होना था। सिम्मी ने शुभ संस्कार देखे हैं निभाए हैं। हर रोज नहा धोकर पाठ पूजा करके वह स्कूल आती है। उसे देवी माँ में अटूट श्रध्दा है। पराये देश में उसके बच्चे सिर्फ देवी माँ के ही हवाले हैं। जब वह चार पांच वर्ष के ही थे सिम्मी को उन्हें भगवान् भरोसे छोड़कर अपने काम पर जाना पड़ता था। कैसे समझेगी जमीला कि वह क्यों इतनी सरल है। भारतीय स्त्रियों का नरकुल जैसा लचीलापन ,,वह बांस ,जो झंझावात के आगे टूटने की हद तक झुक जाता है मगर फिर भी नहीं टूटता और फलता फूलता रहता है ,जमीला जैसी साहसी स्त्री कैसे समझ सकती है ? एक ही झगड़े में उसने दस बरस पुराने संगी को घर से बाहर निकाल दिया चाहे तबसे अब तक साध्वी की तरह जी रही है। पर नहीं। उसको यह बेइज़्ज़ती नहीं सहनी।
माइकल क्यों अचानक इतना उद्विग्न हो उठा ? हमेशा तो वह कहता है की धर्म होना ही नहीं चाहिए इसलिए वह कुछ भी नहीं मानता। धर्म ने ही विश्व में संख्यावाद फैलाया है। कोई भी धर्म पुराना होकर केवल साम्प्रदायिकता का स्वरूप ले लेता है और फिर मेरा तेरा का ज़हर विश्व भर में फैलाता है। तो फिर आज इसे क्या हो गया ? बैठे बिठाये सिम्मी से उलझ लिया।
अगले दिन से सिम्मी ने स्टाफरूम में जाना ही बंद कर दिया। जमीला समझ गयी। अतः रोज चाय का प्याला किसी बच्चे से उसको भिजवा देती। तीन चार दिन बाद माइकल समझ गया। असल में अंग्रेज अपनी तहज़ीब के बहुत पक्के होते हैं। चाहे दिखावा ही हो मगर नाक पर मक्खी नहीं बैठने देते। सिम्मी को भी लगा कि अन्य स्त्रियां उसको पुचकारी सी दे रही हैं अब। बर्था बोली माइकल ने हमारी सबकी इमेज बिगाड़ दी। तुम हमको भी ऐसा न समझो। सबको हक़ है अपनी तरह सोचने का। सिम्मी ने अकड़ कर जताया कि उसको किसी और के दड़बे में घुसाकर अगर मुर्गियों की तरह रखा जायेगा तो वह इस पर सख्त कार्यवाही करेगी।
माइकल औरों का पलड़ा सिम्मी की तरफ झुकता देखकर पिड़पिड़ाया तो होगा। सो एक दिन फिर से उसके कमरे में लंच टाइम में जा धमका। सिम्मी तैयार थी। इस बीच राम मंदिर के रक्तरंजित इतिहास की मोटी सी भूमिका और कुछ दिन पहले हुई तोड़ फोड़ का चलचित्र समाचार में दिखाया जा चूका था। अतः माइकल ने ठन्डे स्वर में सिम्मी को समझाते हुए कहा कि उस दिन वह कुछ ज्यादा उत्तेजित हो गया था मगर हिन्दुओं को मुसलमानो को भारत से नहीं निकालना चाहिए क्योंकि अंग्रेजों से पहले यह देश उन्हीं का था।
सिम्मी फुफकार कर बोली अच्छा ज़रा यह तो बताओ कि भारत कितना पुराना है ? मुसलमान कहाँ से आये थे ? क्यों वहीं रह गए ? अरे यह सब छोडो। अगर भारत उन्हीं का था तो विभाजन क्यों करवाया। वहीं रहते ना। टुकड़े भारत के हुए न कि पाकिस्तान के। और अंग्रेजों ने इसे हो जाने दिया। अब क्या मैं भी कह सकती हूँ कि उन चालीस लाख लोगों को माइकल ने मरवाया ? क्या तुम भी हिटलर के बराबर हो ? आज तक तो तुम सब धर्मों को एक सा मानते थे तो अब ये पक्षपात किसलिए ?
माइकल फिर भी मिनमिनाकर बोला कि जो भी हो यह गलत हुआ।
सिम्मी बोली ठीक है तुमको फैसला देना है तो जाओ भारत जाकर कुछ करो। मुझको यहीं अपना जीवन बिताना है। मेरे लिए अपना परिवार ,अपनी गृहस्थी ,अपनी नौकरी और आज और अभी ज्यादा जरूरी है। इससे अधिक मैं नहीं संभाल सकती। भारत से मैं बीस वर्ष दूर हूँ।
माइकल निरुत्तर हो रहा। खिसिया कर बोला- मैं भी तो अपना खाना बनाता हूँ, घर संभालता हूँ. अकेले आदमी को भी सौ काम होते हैं।
सिम्मी भी कुछ नरम पडी। पूछा , क्यों भाई हमने तो सुना  है कि तुम्हारी कोई गर्लफ्रेंड है। क्या वह कुछ काम नहीं करती ?
नहीं। नज़मा सिर्फ वीकेंड में आती है। हम लंदन के किसी नए कोने में घूमने जाते हैं ,थिएटर देखते हैं ,खाना बाहर खाते हैं। सोमवार को वह सुबह की ट्रैन से वापिस बर्मिंघम चली जाती है।
उसके माँ बाप उसे इस तरह आ जाने देते हैं ? हमारे समाज में तो ऐसा नहीं होता अमूमन। सिम्मी ने आश्चर्य जताया।
माइकल ने बताया कि वह डिवोर्सी है और डाइवोर्स के बदले में उसने एक फ्लैट मांग लिया था जिसमे अब वह अलग रहती है। माँ बाप की उसकी ज़िन्दगी में दखल नहीं है. वह एक आज़ाद लड़की है एकदम आधुनिक। वाइन से परहेज़ नहीं करती। सभी रेस्टॉरेंट में खा लेती है।
सिम्मी ने कुछ और नहीं कहा। माइकल ने माफी नहीं मांगी बस अपना सा मुंह लेकर चलता बना। स्टाफरूम में उसने सबको बाबरी मस्जिद का इतिहास सुनाया पर तभी जमीला ने उसे टोक दिया। माइकल इसमें सिम्मी का क्या योगदान है जो तुम उसकी नाक को कीचड़ में घिस रहे हो ? और वह यहां बैठी क्या कर लेगी ? और तुम भी क्या कर सकते हो ? पहले अपने घर की तो खबर लो। ब्रिक्सटन में आये दिन काले गोरे का फिसाद होता है..तोड़ फोड़ आगज़नी। तुम वहीं रहते हो , पहले उसकी चिंता करो।

जमीला ने मैदान जीत लिया। बाद में उसी ने सिम्मी को सुनाई यह बात। सिम्मी ने पूछा कि क्या वह उसको सांत्वना देने के लिए इतनी सहानुभूति दिखला रही है क्योंकि वह खुद भी तो मुसलमान है।
जमीला हंस पडी। ऐसा नहीं है। त्रिनिदाद में सब मिलेजुले धर्मों के परिवार हैं जो केवल भाषा एक सी होने पर शादियां कर लेते थे। मेरे दादा ईसाई थे तो दादी मुसलमान ।कुछ साल बाद दोनों अलग हो गए। मेरे पापा मुसलमान बने  पर माँ हिन्दू की बेटी हैं। उन्होंने अपने नाम के आगे अली इसलिए लगाया क्योंकि मेरी नानी ने कहा कि शादी के बाद वह अपने पति का ही नाम आगे चलाएगी। यही हिन्दू धर्म की शिक्षा है। जमीला की नानी नियम से रामायण बांचती हैं। जमीला को उसकी न भाषा आती है न धर्म। हाँ उसे सीता नाम बहुत पसंद है। अगर उसकी बेटी होती तो वह उसको सीता बुलाती। सिम्मी हंस पडी।

ज़ाहिर था कि माइकल को सिखाने पढ़ाने वाली हस्ती नज़मा ही थी। सिम्मी ने मन ही मन सबसे पल्ला झाड़ लिया। दिखावे के लिए वह सबको हेलो आदि करती और दिखाती की उसको कोई परवाह नहीं है। उसके अगले सत्र में दिवाली का नाटक करवाने से उसने साफ़ मना कर दिया। सबके मुंह उतर गए। पूरे साज सिंगार के साथ राम रावण युद्ध बच्चों का सबसे पसंदीदा नाटक था। माइकल की कक्षा की बारी थी। पर सिम्मी ने चुप मार ली। विन्नी ने आकर उसे उलांभा दिया तो उसने कहा कि भारत के स्कूलों में क्रिसमस का नाटक होता है तो क्या वहां हिन्दू अध्यापिकाएं नहीं करवातीं ? विन्नी ने ही उस वर्ष पूरी क्लास से गरबा डांस करवाया। सिम्मी ने पोशाकें और घुँघरू आदि बनाये पर चुप बैठी रही। क्लास माइकल की थी। बहुत खुश हुआ। कई बार धन्यवाद कहा।

क्रिसमस पर स्टाफ की दावत हुई तो उसने खड़े होकर सबको सम्बोधित किया और अपनी और नज़मा की सगाई का उद्घोष किया। बताया की उसने हीरे की अंगूठी पहना दी है और ईस्टर में ,यानि तीन महीने के बाद वह लोग शादी कर लेंगे। स्टाफ ने बधाई दी शैम्पेन से भरे गिलास टकराये। कहा कि उसको नज़मा को भी इस पार्टी में लाना चाहिए था। तिसपर वह बोला की वह छुट्टी नहीं ले सकती थी लंदन आने के लिए। पर ईस्टर से पहले वह सबको पार्टी देंगे।
बर्था ने उससे पूछा ,” क्या वह अपनी नौकरी छोड़कर यहां नहीं आ जायेगी तुम्हारे पास रहने ? ”
“नहीं। उसकी वहीँ किसी के संग पार्टनरशिप है। पर हाँ मुझे वहां जरूर नौकरी मिल जायेगी। ना होगा तो हम घर कहीं बीच की जगह ले लेंगे ताकि दोनों को बराबर रास्ता तय करना पड़े।”माइकल ने सोंचते हुए कहा। बर्था ने तनिक मुंह बिचका दिया। मगर माइकल शादी के नाम से बहुत उत्साहित था। उसकी ख़ुशी उबली पड़ रही थी। बात करने का अंदाज़ ही बदल गया था। बर्था ने पूछा कि वह क्रिसमस की छुट्टियों में बर्मिंघम जा रहा है क्या ? तिस पर माइकल ने बताया कि उसे स्कूल के कामों से छुट्टी आदि नहीं मिलती है अतः वह पहले जरा घर ठीक करेगा ,नए कपडे खरीदेगा आदि। बर्था ने फिर से मुंह बिचका दिया।
उसके अगले दिन टॉयलेट में वह मेरी से कह रही थी कि उसे नहीं लगता यह दो दिलों का गठबंधन है। मेरी ने पूछा क्यों तो बर्था ने कहा कि इसमें ज़रा गर्मी कम है। मेरी ने बर्था को आगाह किया कि उसे अपनी राय देने का कोई हक़ नहीं। दोनों परिपक्व हैं आखिर। इस उम्र में उनसे बीस वर्ष वाले युगल जोड़े की सी जीवंतता की उम्मीद करना फिजूल होगा। उधर जमीला को इसलिए संदेह था क्योंकि अभी तक माइकल को नज़मा ने अपने माँ बाप से नहीं मिलवाया था। सगाई भी चुपचाप अंगूठी पहनकर कर ली थी। जमीला तो कम से कम ऐसा कभी भी ना करती। उसकी नज़र में नज़मा माइकल को इस्तेमाल कर रही थी। मगर सब चुप रहे। स्कूल के जीवन में किसे फुर्सत है कि रोज़ के कार्यक्रम से अधिक कुछ सोंचे ?

आनन् फानन में ईस्टर आ पहुंचा। टर्म के आखिरी दिन स्टाफ मीटिंग थी। मीटिंग ख़त्म हुई तो सबने माइकल को शुभकामनाएँ देते हुए पूछा किस दिन है शादी।  माइकल गंभीर मुद्रा में खड़ा हो गया और सबको सम्बोधित करके बोला “मित्रों मुझे आप सबकी आशाओं पर पानी फेरते बुरा लग रहा है। मगर असल में मैंने शादी का इरादा छोड़ दिया है। नज़मा अब मेरे जीवन में शामिल नहीं है। ”
“नो… !” कई स्वर एक साथ बोल उठे।
“अरे ऐसा कैसे हो गया ? क्या उसके घरवालों ने कोई आपत्ति की है उसके दुबारा शादी करने पर?”ठन्डे दिमाग वाली मेरी ने पूछा।
“नहीं और हाँ। घरवालों से मुझको मिलाने से पहले नज़मा ने मुझे अपना धर्म परिवर्तन करने के लिए कहा क्योंकि वह अपने परिवार को खुश करना चाहती है ता कि वह लोग उसको विधर्मी न समझें। पर उसने मेरे माँ बाप के बारे में नहीं सोंचा। उनको भी मेरे धर्म बदलने से दुःख नहीं होगा क्या ? भले ही हम रोज़ रोज़ चर्च न जाते हों मगर मैं पर्यावरण संरक्षण से जुड़ा रहा हूँ और भगवान् की सुपर पावर को महसूस करता हूँ। ये उसका डिज़ाइन था कि मैं ईसाई समूह में पैदा हुआ। नज़मा का धर्म मेरे धर्म से या किसी अन्य धर्म से बेहतर है या कमतर है इसका फैसला न वह कर सकती है न कोई और। ” यह कहते हुए उसका सर सिम्मी की तरफ तनिक झुक गया।
कुछ रूककर उसने घूँट पानी का पिया और आगे बोला,” मैं नहीं सोंचता कि प्रेम किन्हीं धार्मिक उसूलों से बाध्य है। और अगर विवाह मेरे इस्लाम धर्म स्वीकार करने पर निर्भर है तो यह न प्रेम है न विवाह। यह केवल धर्म परिवर्तन का माध्यम है। मैं इस साजिश के सख्त खिलाफ हूँ। अंत के तंत यह संख्यावाद है।  भले ही मैं अच्छा क्रिस्चियन नहीं हूँ मगर मैं और कुछ भी नहीं बनना चाहता। ”

जमीला सिम्मी को और सिम्मी बर्था को देख रही थी।

— कादंबरी मेहरा 

*कादम्बरी मेहरा

नाम :-- कादम्बरी मेहरा जन्मस्थान :-- दिल्ली शिक्षा :-- एम् . ए . अंग्रेजी साहित्य १९६५ , पी जी सी ई लन्दन , स्नातक गणित लन्दन भाषाज्ञान :-- हिंदी , अंग्रेजी एवं पंजाबी बोली कार्यक्षेत्र ;-- अध्यापन मुख्य धारा , सेकेंडरी एवं प्रारम्भिक , ३० वर्ष , लन्दन कृतियाँ :-- कुछ जग की ( कहानी संग्रह ) २००२ स्टार प्रकाशन .हिंद पॉकेट बुक्स , दरियागंज , नई दिल्ली पथ के फूल ( कहानी संग्रह ) २००९ सामायिक प्रकाशन , जठ्वाडा , दरियागंज , नई दिल्ली ( सम्प्रति म ० सायाजी विश्वविद्यालय द्वारा हिंदी एम् . ए . के पाठ्यक्रम में निर्धारित ) रंगों के उस पार ( कहानी संग्रह ) २०१० मनसा प्रकाशन , गोमती नगर , लखनऊ सम्मान :-- एक्सेल्नेट , कानपूर द्वारा सम्मानित २००५ भारतेंदु हरिश्चंद्र सम्मान हिंदी संस्थान लखनऊ २००९ पद्मानंद साहित्य सम्मान ,२०१० , कथा यूं के , लन्दन अखिल भारत वैचारिक क्रान्ति मंच सम्मान २०११ लखनऊ संपर्क :-- ३५ द. एवेन्यू , चीम , सरे , यूं . के . एस एम् २ ७ क्यू ए मैं बचपन से ही लेखन में अच्छी थी। एक कहानी '' आज ''नामक अखबार बनारस से छपी थी। परन्तु उसे कोई सराहना घरवालों से नहीं मिली। पढ़ाई पर जोर देने के लिए कहा गया। अध्यापिकाओं के कहने पर स्कूल की वार्षिक पत्रिकाओं से आगे नहीं बढ़ पाई। आगे का जीवन शुद्ध भारतीय गृहणी का चरित्र निभाते बीता। लंदन आने पर अध्यापन की नौकरी की। अवकाश ग्रहण करने के बाद कलम से दोस्ती कर ली। जीवन की सभी बटोर समेट ,खट्टे मीठे अनुभव ,अध्ययन ,रुचियाँ आदि कलम के कन्धों पर डालकर मैंने अपनी दिशा पकड़ ली। संसार में रहते हुए भी मैं एक यायावर से अधिक कुछ नहीं। लेखन मेरा समय बिताने का आधार है। कोई भी प्रबुद्ध श्रोता मिल जाए तो मुझे लेखन के माध्यम से अपनी बात सुनाना अच्छा लगता है। मेरी चार किताबें छपने का इन्तजार कर रही हैं। ई मेल [email protected]