कविता

सूखे आंसू

सूखे आंसू

न जाने क्यों नही आते आंसू

क्या खु़शी का अह्सास

और दु:ख का उपहास

आज हो गया कम है

इसलिये सुख गये हैं आंसू

न जाने क्यों नही आते हैं आंसू

भौतिकता की दौड़ है

या अकेलेपन का मोड़ है

सिमट गया है अंतर्मन

जिसमें खो दिये है आंसू

न जाने क्यों नही आते हैं आंसू

रिश्तों की ये डोर है टूटी

पुरानी बातें लगती हैं झूठी

धनमद में है सबकुछ भूला

जिसने मिटा दिये हैं आंसू

न जाने क्यों नही आते हैं आंसू

मातपिता के प्यार को भूले

बहनों के नही रह गये हैं झूले

अनिल का यह फेर देखिये

जिसने सूखा दिये हैं आंसू

न जाने क्यों नही आते हैं आंसू

डॉ. अनिल कुमार

सहायक आचार्य साहित्य विभाग एवं समन्वयक मुक्त स्वाध्यायपीठ, केन्द्रीय संस्कृत विश्वद्यालय श्रीरघुनाथ कीर्ति परिसर, देवप्रयाग, उत्तराखण्ड मो.न. 9968115307