चलेंगे साथ-साथ…!
जब… हम चलेंगे साथ-साथ…!
जब…,
सूरज उगेगा मनमाने तरीके से,
किसी भी दिशा में…,
जब…,
तारों की भी अपनी दुनिया होगी
आसमां से जरा अलग ही…,
जब…,
नीम और पलाश हाथों में डालें हाथ
बातें करते दिखेंगे सड़कों पर…,
जब…,
भगवान की उपस्थिति नहीं होगी
सिर्फ उसके ही घरों में…,
जब…,
अच्छा शहरी बनते बनते यूं ही
हम बने रहेंगे थोड़े ग्रामीण…,
जब…,
सिर्फ बीजों की ही खातिर
नहीं रोपेंगे पौधे…,
और…,
जब सिर्फ लिखने के लिए ही
कविता नहीं लिखेगा कवि…,
सुनो…!
हम तब चलेंगे साथ साथ…,
प्रेम करते हुए…।
— मनोज शाह ‘मानस’