कविता

औरत

एक औरत
दिन रात पिसती
अपने को ही
कामों की चक्की पर
सहती वह
अनगिनत पीड़ा
बिन दवा के
क्योंकि उसे है पता
यह उसका
घर परिवार है
इसलिये तो
है बहुत ही प्यार
कहती वह
यही  मेरा संसार
तो शिकायत
करुं किसीसे भी क्यों
खुश रहती
ओढ़कर मुस्कान
चेहरे पर।
— अमृता राजेन्द्र प्रसाद

अमृता जोशी

जगदलपुर. छत्तीसगढ़