कविता

खो ना जाए भीड़ में

खो ना जाए भीड़ में
स्वयं की तू पहचान रख
राहें तेरी, मंजिल तेरी
निरंतर चल कुछ निशान रख।
तेज़ रख सूरज सा मन में
और पवन सा वेग रख
तीर हौसलों के बना
तरकस में उनको साध रख,
खो न जाए भीड़ में
स्वयं की तू पहचान रख।
कर्म को आकार दें
विचारों में वो धार रख
तम हो कितना भी घना
स्वयं में तू प्रकाश रख
खो न जाए भीड़ में
स्वयं की तू पहचान रख।
अड़चनें हो राह में
बड़ी-बड़ी, अड़ी-अड़ी
चीरकर बढ़ जाए जो
नदी सा तू प्रवाह रख
खो ना जाए भीड़ में
स्वयं की तू पहचान रख।
स्वप्न हों जीवंत तेरे
कोशिशों के हिसाब रख
आत्ममंथन हो समय पर
मन में ऐसे सवाल रख
खो न जाए भीड़ में
स्वयं की तू पहचान रख।
विष मिला या कि अमृत
पात्रता के जवाब रख
लक्ष्य साधे चल तू अविरल
धैर्य की सौगात रख
खो न जाए भीड़ में
स्वयं की तू पहचान रख
राहें तेरी, मंजिल तेरी
निरंतर चल कुछ निशान रख।

— मोहिनी गुप्ता

मोहिनी गुप्ता

93/4,अमर ज्योति कॉलोनी गणेश मन्दिर के पास, न्यू बोवनपल्ली, सिकन्दराबाद,तेलंगाना, मो.-8801282326