बचपन की कहानी
आओ तुम्हें सुनाता हूं
बचपन की कहानी,
वहां भी होती थी दिल्लगी
और साथ ही होती थी
हर दिन एक नई कहानी।
रूठना मनाना
आए दिन ही चलता था ।
पर नहीं थी मन में
कोई छल कपट की कहानी।
हर रोज़ हम सब
लड़ते और झगड़ते थे
पर नहीं थी दिल में कोई
खूनी दरिंदों जैसी
दुश्मनी की कोई कहानी।
मां की गोद थी
जिसपे रखकर सिर
मिलती थी नित्य ही
सुने को एक प्यारी सी कहानी।
डॉ. राजीव डोगरा