कविता

हजार आँखें

वो सब देखता है
उसकी हजारों हजार आँखें हैं,
उसे धोखा देने का विचार छोड़ दीजिए
उसकी निगाहों से बच जायेंगे
यह भूल कर भी मत सोचिए।
आपकी हर कारस्तानी
बेकार हो जायेगी,
उसकी नजरों से आपकी
एक भी हरकत छुप नहीं पायेगी,
आपको तो पता है
उसकी इजाजत के बिना
एक पत्ते का हिलना तो दूर
खड़क भी नहीं सकता,
फिर भला सोचिए
जिसकी हजार आँखें हों
उसकी नजरों से भला
हम,आप या दुनिया का कोई भी
जीव भला कैसे बच सकता है?

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921