लघुकथा

मेल-मिलाप

आज सौम्या के ससुराल और आस-पड़ोस में उसकी सौम्यता के चर्चे आम थे.
”बात यह नहीं है, कि सौम्या की सौम्यता कोई नई चीज थी, नई चीज उसके चर्चे आम होना है. इसका श्रेय जाता है उसकी जिठानी चंद्रिका को.” चलते पंखे के घूमते परों के साथ सौम्या की सोच भी घूम रही थी.
”सौम्या के आने से हमारी हर छोटी-से-छोटी जरूरत का ध्यान रखा जाने लगा है.” जेठ देवेश जी और पति रूपेश जी का मानना था.
”तुम्हारी तो ऐश हो गई, आजकल हर रोज नई-नई तरह का नाश्ता ला रहे हो, पहले तो रोज ब्रेड-जैम ले आते थे.” जेठ जी के बच्चों चंद्रेश और इंद्रेश की मित्र मंडली कहती.
”हां यार, जब से दीदी आई हैं, अपनी तो ऐश हो गई है. जी भरकर प्यार मिलता है और खाने में रोज नई वैराइटी! दीदी का मानना है, कि जहर बन सकता है बच्‍चों के लिए ब्रेड-जैम खाना.” चाची को दीदी कहना दोस्तों को हैरान जरूर करता, पर वे भी उनके स्वादिष्ट पकवानों के स्वाद के दीवाने थे.
जिठानी चंद्रिका के प्रति भी सौम्या के व्यवहार में कोई कमी नहीं थी, पर चंद्रिका में न तो चांदनी-सी शीतलता थी, न मधुरता.
”मैं जब सोती हूं, तुम बरतनों की खटर-पटर शुरु कर देती हो.” शिकायत का मुद्दा वे ढूंढ ही लेतीं.
”मैं जरा-सा सो क्या गई, इतने-से बरतन भी तुमसे साफ नहीं किए गए!” उनके पास मुद्दों की कमी थोड़े ही थी. सौम्या तो सौम्या थी, सब ठीक होने में कुछ समय तो लगता ही है, वह मां के घर से सीखकर आई थी.
”पापा जी, आज कार घर छोड़ जाइएगा, ममी जी को शॉपिंग ले जाना है. उनके कैटरेक्ट के ऑप्रेशन की तारीख नजदीक आ रही है, उससे पहले एक-दो बार मेरे साथ कार में बैठ जाएंगी, तो अच्छा ही होगा.” देवेश जी को बात जंच गई.
”आज कार में ही चलेंगे.” चंद्रिका जी के ऑटो वाले को फोन कर आने को कहने पर सौम्या ने कहा.
”मैं हूं ना!” चंद्रिका जी के ड्राइवर तो आया ही नहीं! कहने पर सौम्या ने कहा.
”तुम!” हैरान-परेशान चंद्रिका जी ने कहा.
सब कुछ ठीक होने और सही-सलामत घर आने पर भी वे खुश नहीं दिखाई दीं. खुश होने का स्वभाव भी विरलों को ही मिलता है!
”बेटी, आज नई कार आ जाएगी, फिर तुम आराम से बाहर का काम भी कर सकोगी.” एक दिन सुबह काम पर जाते हुए जेठ जी ने कहा.
”सौम्या, मेरी बांईं आंख बंद नहीं हो पा रही.” दांईं आंख के कैटरेक्ट के ऑप्रेशन के बाद चंद्रिका जी ने कहा.
”दीदी, मेरी ममी के ऑप्रेशन के बाद भी ऐसा ही हो रहा था, उन्होंने ऑप्रेशन वाली आंख बंद की, तो दूसरी आंख अपने आप बंद हो गई.” सौम्या का सौम्य अनुभव मुखर था.
”ऑप्रेशन वाली आंख को थोड़ी देर बंद रखिएगा.” सौम्या की बात मानें-न-मानें का निश्चय करने से पहले ही एक नर्स ने आकर कहा.
”दांईं आंख बंद करते ही बांईं आंख अपने आप बंद हो गई.” सौम्या के अनुभव और विनम्रता पर चंद्रिका जी हैरान थीं.
”सचमुच एक आंख पलक झपकती है, तो दूसरी आंख भी उसका साथ देती है.” चंद्रिका जी को समझ आ गया था, भले ही समय थोड़ा ज्यादा लग गया था.
”एक ही घर में रहते हुए दोनों आंखों में इतना मेल-मिलाप है, तो सौम्या और चंद्रिका में क्यों नहीं!” चंद्रिका जी की सोच को राह मिल गई थी.
रास्ते पर ‘गति’ की सीमा है,बैंकों में ‘पैसों’ की सीमा है, परीक्षा में ‘समय’ की सीमा है, परंतु ‘सोच’ की कोई सीमा नहीं है.
”सौम्याSSS, जरा मेरे पास भी बैठा कर, दो अच्छी बातें मैं भी सीख लूंगी.” चंद्रिका जी की विनम्र टेर पर सौम्या की तंद्रा टूटी.
”मेल-मिलाप की बेला शुरु हो गई है.” सौम्या का अनुमान सही निकला.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

2 thoughts on “मेल-मिलाप

  • *लीला तिवानी

    लघुकथा ब्लॉग ‘रसलीला’ के हमारे एक पाठक प्रकाश गुप्ता जी की बेजोड़ प्रतिक्रिया-”आदरणीय टीचर जी लघु कथा ‘ मेल-मिलाप’ बहुत ही बेजोड़ रही। परिवार में यह सब होता है। कुछ संवाद बहुत ही लाजबाब थे। एक ही घर में रहते हुए दोनों आंखों में इतना मेल-मिलाप है, तो सौम्या और चंद्रिका में क्यों नहीं!” **रास्ते पर ‘गति’ की सीमा है,बैंकों में ‘पैसों’ की सीमा है, परीक्षा में ‘समय’ की सीमा है, परंतु ‘सोच’ की कोई सीमा नहीं है. वाह अति सुंदर।”

  • *लीला तिवानी

    लघुकथा मंच फलक के हमारे एक पाठक महेश उपाध्याय की प्रतिक्रिया-
    बड़ी अच्छी प्रेरक कथा
    परिवारों में ऐसी सोच
    ही स्वर्ग को धरती पर उतार सकती है
    काश हमारे TV इस तरह की कथाएं दिखाए!
    बधाई

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