कविता

कितनी प्यारी धूप खिली है

प्यारी धूप खिली है

आज हमारे फुलवारी में
कहीं तरुवर है इठलाते
झूमती है क्यारी क्यारी
इन मदमस्त गुलाबों को देखो
खिले हैं की रंगों
कहीं गुलाबी कहीं लाल
कहीं खिले हैं पीले पीले
ज़रा इन गेंदे के फूलों को देख
मानो किसी ने लड्डू भर दिए बगिया में
वहीं कोने में गुलदाउदी है इतराती
डहरिया हु प्रणय के गीत सुनाती
जूही और मोगरे का क्या कहना
अपनी खुशबू सर्वत्र फैलाती
रजनी गंदा के फूलों ने
बगिया को समृद्ध बनाया
सूरज की स्वर्णिम किरणें
बगिया को सुनहरा रुप दे जाती।।
—  विभा कुमारी नीरजा

*विभा कुमारी 'नीरजा'

शिक्षा-हिन्दी में एम ए रुचि-पेन्टिग एवम् पाक-कला वतर्मान निवास-#४७६सेक्टर १५a नोएडा U.P