कविता

अलविदा

ये अवसर है,बेला है,अलविदा का
पर!इसेअलविदा न समझें,न करें।

हम दिवस को मात्र अलविदा करें
हम मासों को मात्र अलविदा करें।

हम करे अलविदा,बीतते ये वर्षों को
हम करें अलविदा,गीले-शिकवे को।

वक्त वही है,और अवसर भी वही है
बस युग बदल गया,और हम वही हैं।

हम सुस्वागत करें,नव सत्र बेला का
हम अलविदा करें,द्वेष,दुर्भावना का।

ये अवसर है,उन्नति और उमंगों का
ये अवसर है,आनन्द व उल्लासों का।

इस पावन सुअवसर,को हम न चुके
कुछ कर गुजरने से,कभी नही रुकें।

अपनी पिछली,भूलों को हम सुधारें
नई आशा-विश्वास,को हम स्वीकारें।

हम दृढ़ संकल्पित,हो जाए,ये ठान ले
अधूरे सपने पूरा करना है,ये मान लें।

कुछ नया सोंचे,बीती बातों को भुलाएं
आओ मिलकर,प्यार के फूल खिलाएं।

आने वाला नव वर्ष,हमारे लिए प्रेरणा है
आओ कुछ संकल्प लें,कुछ तो करना है।

— अशोक पटेल “आशु”

*अशोक पटेल 'आशु'

व्याख्याता-हिंदी मेघा धमतरी (छ ग) M-9827874578