कविता

प्रकृति में भी ईश्वर

सोचिए और विचार कीजिए
प्रकृति में ईश्वर का अक्स देखिए,
ईश्वर स्वयं चलकर
आपके पास तो आने से रहा,
इसीलिए प्रकृति के रूप में अपना
विभिन्न स्वरूप जगत में
उपहार स्वरूप दे दिया।
अब ये हमें समझना है
प्रकृति से पंगा नहीं लेना है,
प्रकृति से दुर्व्यवहार की सजा
हम झेल रहे हैं,
बाढ़, सूखा, बादल फटने ही नहीं
प्रदूषण, मौसम की प्रतिकूलता संग
नित नयी बीमारियों, दुविधाओं संग
जीने को विवश हो रहे हैं।
ये सब ईश्वर की ही माया है
प्रकृति से अन्याय की ये सजा है
ईश्वर अपने ढंग से
हमें बार बार सचेत करता है
हमें किसी न किसी रुप में
जगाने की कोशिश करता है,
उसकी पूजा न कीजिये तो भी
नहीं दिल पर लेता है,
पर प्रकृति यानी ईश्वरीय अंश से
जो खिलवाड़ हम कर रहे,
ईश्वर बहुत देर तक सहन नहीं करता है।
अच्छा है हम सब महसूस करें
प्रकृति में भी ईश्वर निवास करता है
ये जीवन में उतार लें।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921