कविता

नववर्ष: स्वागत और विदाई

आइए हंसी खुशी
विदा करें दो हजार इक्कीस
न ईर्ष्या द्वेष नफरत करें
न कोई शिकवा शिकायत करें
जो बीत गया उसे लौटा नहीं सकते
फिर जाते हुए मेहमान से
दुःखी होकर भी क्या पा सकते हैं?
बीती बातों को बिसार दो
उत्साह से उसे विदा करो
तीन सौ चौंसठ दिन उसनें
जैसे भी हो साथ निभाया है
वादा इतने ही दिन साथ निभाने का था
ईमानदारी से निभाया है,
अब लौटकर नहीं आयेगा
हमारी स्मृतियों से निकल भी नहीं पायेगा
पर हमसे हमेशा के लिए दूर हो जायेगा।
लेकिन साथ निभाने के लिए
हमें अपना भाई दो हजार बाइस
फिर भी सौंप ही जायेगा।
दो हजार बाइस का खुले मन से
स्वागत, वंदन, अभिनंदन कीजिए,
इक्कीस की खीझ न बाइस पर निकालिए,
इक्कीस जैसा भी था अब जा ही रहा है
बाइस अपनी नयी ऊर्जा के साथ
तीन सौ पैसठ दिन के लिए आ ही रहा है।
बस थोड़ा संयम रख
अपना रवैया बदलें,
दोष लगाने से अच्छा है
पहले खुद में भी झांक लें।
उत्साह उमंग या अतिरेक से बचें
अपना और अपनों के साथ साथ
समाज, राष्ट्र और संसार का भी
थोड़ा थोड़ा ही सही ख्याल भी करें।
संयम, सद्भाव, सदाचार, प्रसन्नता संग
जाने वाले को विदा करें
आने वाले का स्वागत करें।
दो हजार इक्कीस तुझे विदा देते हैं
तुम्हारे जाने से मन भावुक हो रहा है
मगर आना जाना संसार की रीति है
दो हजार बीस गया था तब तुम आये थे
अब तुम जा रहे हो तभी तो
हम दो हजार बाइस के स्वागत में
फूल माला लिए सबके संग खड़े हैं।
बहुत ही प्रसन्न मन हैं।

*सुधीर श्रीवास्तव

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