कविता

देश फिर से सोने की चिड़िया बन जाये

देश फिर से सोने की चिड़िया बन जाय
आये यह नव वर्ष खुशियां लेकर
सबके जीवन में हो उजियारा
छट जाएं बादल आफ़तों के सारे
महक उठे फिर यह चमन हमारा
महामारी ने ऐसा भयानक रूप दिखलाया
बहुत देखी पिछले वर्ष हमने तबाही
अपने पराये का भेद सारा मिट गया
लिख गई इतिहास में जो काली स्याही
टिम टिम करते थे सितारों की तरह
वो दीपक बुझा दिए इसने सारे
दिल की व्यथा कोई सुनने वाला नहीं
जाएं कहाँ वो सब आफत के मारे
सबक लें कुछ अतीत से अपने
पर्यावरण को अपना शत्रु न बनाएं
धरा की रक्षा में जुट जाएं तन मन से
पेड़ों को न काटें नए पेड़ लगाएं
समझें हम इशारे उससे न बड़ा कोई
फिर क्यों हम प्रकृति को झिंझोड़ रहे हैं
मुकाबला करना नामुमकिन है उससे
फिर क्यों सारे नियम तोड़ रहे हैं
दुआ करो उस दाता से सब मिलकर
नया साल लेकर आये खुशियों की बहार
रोजगार मिल जाये सबको महंगाई हो जाये कम
अमन चैन हो हर तरफ किसी से न हो तकरार
हर भारतबासी का एक हो सपना
देश फिर से सोने की चिड़िया बन जाये
सब को मिल जाये दो वक्त का खाना
कोई रात को भूखा न सोने पाए
रवींद्र कुमार शर्मा
घुमारवीं
जिला बिलासपुर हि प्र

*रवींद्र कुमार शर्मा

घुमारवीं जिला बिलासपुर हि प्र