कविता
कविता
सरस सुवासित परम् मनोहर
प्रातः बेला सुखद सुहावन ।
नवल सूर्य की नवल रश्मियाँ
सदा बनाएं जग को पावन ।
धरती पर फैली हरियाली
नव कुसुमों की महक लुटाती,
बिखर रही है स्वर्ण लालिमा
दशों दिशाएं अति हर्षाती।
गुंजित हो खगकुल का कलरव
नदियों की निर्मल धारा हो ।
दुःख क्लेश भय रोग नष्ट हों
स्वस्थ अखिल भारत प्यारा हो।
मधुमय मौसम रस वासन्ती
स्वावलंबन की ज्योति जलाए।
बूंद बूंद से घट भर जाता
जीवन का यह मर्म बताए।
‘मृदुल’ मनोहरता से भारत माँ
का आओ दामन भर दें ।
फिर सद्कर्मो के द्वारा हम
हर पथ को आलोकित कर दें।
मंजूषा श्रीवास्तव’मृदुल’