तुम और मैं..!
सुरमई शाम संग
झुरमुटों के सानिध्य में,
करते प्रेमालाप,
खोये थे ..
अपनी प्यारी
खूबसूरत प्रेमिल
स्वप्न नगरी में..!
सन्ध्या का
मख़मूरी आँचल,
उस साँझ …
धीरे -धीरे ,लहराते
मादक और
खूबसूरत पलों की
सृष्टि कर रहा था..!
समीप कल -कल सरिता,
मन्द पवन
और हम -तुम..!
मौन रहकर भी,
कह रहे थे
वह सब …!
जो एक प्रेमीयुगल
कहता रहा सदियों से…
एक दूसरे से…!
और चाँद को देखो
कैसे चुपके से..
झुरमुटों से झांकता,
सुन रहा था,
हमारे प्रेमालाप को..!
तभी बहुत खूबसूरत
हो गया चाँद,
सुनता जो रहा सदा,
युगल हृदयों की ,
प्रेमसिक्त,लयबद्ध
धड़कने….!
— रागिनी स्वर्णकार (शर्मा)