ग़ज़ल
तेरी ज़ुल्फ में पेचोख़म है।
और खूब बात में दम है।
क्यों और सताती हो अब,
पहले दु:ख दिल में कम है?
दूर रहो इससे तुम,
शायद थैले में बम है।
आ जाए लड़ ले मुझसे,
जिसके बाज़ू में दम है।
है आज कोई दिल ऐसा,
कोई न जिसमें ग़म है?
हैं सब घमन्ड के मारे,
है अधिक किसी में कम है।
क्यों मार रहे हो उसको,
क्या कोई उसमे दम है?
‘चन्द्रेश’ है ताक़त उनमें
जिन हाथों में परचम है।
— चन्द्रकांता सिवाल “चन्द्रेश”