पेट की खातिर
गाय पर लट्ठ लगभग फैंकते हुए वह चिल्लाई-“छोरी,जा छुड़ा उस डायन से! घास की दो पुली मुंह में भर ले गई है वह।मसान में जाए ये करमजली।”
उसकी लड़की तेजी से दौड़ी और गाय को दो धप लगाते हुए उसने गाय के मुंह से बची-खुची घास की पुली छुड़ाकर व्यवस्थित की और पुली के ढ़ेर में रख दी।
“अरे बाई,उस बेचारी गाय को ऐसा क्यों बोल रही हो।अभी आप ही ने तो मुझसे कहा था कि गोमाता के लिए घास की पुली ले लो।आज बुधवार है, गणपति जी का दिन है और आप ही उसे डंडे से मारते हुए उसके लिए ऐसे शब्द बोल रही हो।”मैंने फूल-पत्ती, प्रसाद और कुछ देर पहले वहीं मंदिर परिसर में बंधी गाय के लिए खरीदी घास की पुली के पैसे देते हुए कहा।
“बाबूजी,आप लोग मंदिर में दान-पून कमाने आते हो, इसलिए गोमाता को कुछ खिलाओगे तो पून(पुण्य)लगेगा।हम लोग तो यहां फूल-प्रसादी बेचने के लिए बैठे हैं। ऐसे गाय फोकट में पुली खींच खाएगी तो हम तो भूखे ही मर जाएंगे। आखिर पेट की खातिर ही तो दुकान लगाकर बैठे हैं!”और वह दूसरे दर्शनार्थियों को फूल-पत्ती, प्रसाद ले जाने का आग्रह करने लगी।