लघुकथा

पेट की खातिर

गाय पर लट्ठ लगभग फैंकते हुए वह चिल्लाई-“छोरी,जा छुड़ा उस डायन से! घास की दो पुली मुंह में भर ले गई है वह।मसान में जाए ये करमजली।”
उसकी लड़की तेजी से दौड़ी और गाय को दो धप लगाते हुए उसने गाय के मुंह से बची-खुची घास की पुली छुड़ाकर व्यवस्थित की और पुली के ढ़ेर में रख दी।
“अरे बाई,उस बेचारी गाय को ऐसा क्यों बोल रही हो।अभी आप ही ने तो मुझसे कहा था कि गोमाता के लिए घास की पुली ले लो।आज बुधवार है, गणपति जी का दिन है और आप ही उसे डंडे से मारते हुए उसके लिए ऐसे शब्द बोल रही हो।”मैंने फूल-पत्ती, प्रसाद और कुछ देर पहले वहीं मंदिर परिसर में बंधी गाय के लिए खरीदी घास की पुली के पैसे देते हुए कहा।
“बाबूजी,आप लोग मंदिर में दान-पून कमाने आते हो, इसलिए गोमाता को कुछ खिलाओगे तो पून(पुण्य)लगेगा।हम लोग तो यहां फूल-प्रसादी बेचने के लिए बैठे हैं। ऐसे गाय फोकट में पुली खींच खाएगी तो हम तो भूखे ही मर जाएंगे। आखिर पेट की खातिर ही तो दुकान लगाकर बैठे हैं!”और वह दूसरे दर्शनार्थियों को फूल-पत्ती, प्रसाद ले जाने का आग्रह करने लगी।

*डॉ. प्रदीप उपाध्याय

जन्म दिनांक-21:07:1957 जन्म स्थान-झाबुआ,म.प्र. संप्रति-म.प्र.वित्त सेवा में अतिरिक्त संचालक तथा उपसचिव,वित्त विभाग,म.प्र.शासन में रहकर विगत वर्ष स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ग्रहण की। वर्ष 1975 से सतत रूप से विविध विधाओं में लेखन। वर्तमान में मुख्य रुप से व्यंग्य विधा तथा सामाजिक, राजनीतिक विषयों पर लेखन कार्य। देश के प्रमुख समाचार पत्र-पत्रिकाओं में सतत रूप से प्रकाशन। वर्ष 2009 में एक व्यंग्य संकलन ”मौसमी भावनाऐं” प्रकाशित तथा दूसरा प्रकाशनाधीन।वर्ष 2011-2012 में कला मन्दिर, भोपाल द्वारा गद्य लेखन के क्षेत्र में पवैया सम्मान से सम्मानित। पता- 16, अम्बिका भवन, बाबुजी की कोठी, उपाध्याय नगर, मेंढ़की रोड़, देवास,म.प्र. मो 9425030009