इंतजार
सुनो इस बार जब आना
थोड़ा वक्त अपने संग लाना
जल्दी जाने का जो करते बहाना
वक्त का कुछ नहीं ठिकाना|
किलकारियां रखा है कैद बच्चों की
हर वो पल जिओगे तुम
देखूंगी भावनाएं तुम्हारे चेहरे की
संजो कर फिर रखूंगी उसे|
मोतियों की माला पिरोई है
उसे तुम्हे पहनाऊँगी
जो माँ ने तुम्हारी राह तकते
बिखरे थे अपने दृगों से|
वो सुमन भी रखा है हमने
तुम्हारे सांसो से एकदम ताजी
लगाए थे मेरे बालों में
पिछले वर्ष जब तुम आए थे|
देहरी पर करके इंतजार
फीकी पड़ गई बनारसी लाल
अबकी जब आना तू साजन
चटक लाल फिर भर जाना|
हां सरहद पर हो तुम
कितनों के घर है रौशन
एक जुगनू की भांति ही
रोशनी इस आंगन भी ले आना|
तुम हो विजयी
चाहत है इस दिल में
वह अफसाने सारे
इन अधरों पर दे जाना|
सुनो इस बार जब आना
वह किलकारी,मोती की माला
ताजे पुष्प की पंखुड़ियां
संग अपने भी ले जाना|
— सविता सिंह मीरा