कली -कली खुली है, थिरक उठा मन मोर,
मधुमास मन्द-मन्द महुआ महकाए है।
फूला -फूला कचनार, बरसा रहा है प्यार,
प्रेम का परस तन-मन बहकाए है।
पवन नहाये गन्ध, अंग-अंग है अनंग,
मादक है रस आम्र मंजरी लुटाए है।
चढ़ा रहा प्रेम रंग, केशर की क्यारी सँग
कुहुक-कुहुक पिक सुर सरसाए है।
— रागिनी स्वर्णकार शर्मा