कविता

जाने चले जाते है कहां

सात दशक से
हिन्द में गूंजती थी
जिनकी आवाज
सभी पर्व और त्योहार।।
तेरह की उम्र से ही
आवाज की जादू चली
गली गली गूंजी
ऐ मेरे वतन के लोंगो।।
छा गयी हिन्द में
सुर कोकिला लता जी बनी
सुर और स्वर का अनोखा संगम
सभी की गायिकी पर भारी पडी।।
हर दिल में बस, हिन्द की धड़कन बनी।।
छत्तीस भाषा और
पचास हजार गानो का सफर
अदभूत अनंत और वेमिसाल
याद रहेंगे साल दर साल
आपके अनमोल आवाज
का दिवाना हर शक्ख रहा
आज हिन्दुस्तान रो रहा
सुर सम्राट अनंत यात्रा पर चलीं।।
जाने चले जाते कहां
अब न वो आवाज होगा
गम में डूबा सूर और ताल
आपकी उपलब्धि वेमिसाल। ।
कोशिश हर कोई करता
कोई लता नही होता
शताब्दी गुजर जाती
कोई स्वर कोकिला नहीं होता।।
विनम्र श्रद्धांजलि
— आशुतोष

आशुतोष झा

पटना बिहार M- 9852842667 (wtsap)