स्वर की देवी
स्वर की देवी कोकिला, मीठी सी आवाज।
सात सुरों के ताल से, पहनी सुर का ताज।।
पहनी सुर का, ताज लता जी, जग में छायी।
मधुरस घोली, जन-जन में वो, मन हर्षायी।।
गीत सभी को, प्यारी लगती, सुनते हर घर।
भारत बेटी, जग में आयी, लेकर के स्वर।।
जन-जन के दिल में रही, और बनायी नाम।
हम सब को वह छोड़ के, चली परम वो धाम।।
चली परम वो, धाम यहाँ सब, नीर बहाये।
देख चेहरा, याद लता जी, की जब आये।।
समाचार ये, सुनकर साथी, दहला तन मन।
स्वर की देवी, छोड़ चली अब, अपना जीवन।।
— प्रिया देवांगन “प्रियू”